Top 20 भारत के रहस्यमय मंदिर - Mysterious Places in India
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कहा जाता है कि भारत की भूमि विद्वानों की भूमि है, जिसके पीछे भारत का गौरवशाली इतिहास गवाह रहा है. चिकित्सा से ले कर विज्ञान के क्षेत्र में आगे होने के बावजूद यह देश कई मायनों में बाकी देशों से हटकर है जिसमें आस्था भी एक अहम भूमिका निभाती है, जो इस देश को इतनी विविधता होने के बावजूद एक धागे में बांधे रखता है.
धर्म, भक्ति, अध्यात्म और साधना का देश है भारत, जहां प्राचीन काल से पूजा-स्थल के रूप में मंदिर विशेष महत्व रखते रहे हैं। यहां कई मंदिर ऐसे हैं, जहां विस्मयकारी चमत्कार भी होते बताए जाते हैं। जहां आस्थावानों के लिए वे चमत्कार
दैवी कृपा हैं, तो अन्य के लिए कौतूहल और आश्चर्य का विषय। आइए जानते हैं, भारत के कुछ विशिष्ट मंदिरों के बारे में, जिनके रहस्य असीम वैज्ञानिक प्रगति के बाद कोई नहीं जान पाया है।
इस आस्था को बनाये रखने में यहां मौजूद मंदिरों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता. चलिए आज हम आपको भारत के ऐसे ही 30 मंदिरों की सैर पर ले चलते हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, इसी के साथ-साथ भारत के गौरवशाली इतिहास को भी समेटे हुए है.
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर बेहद अद्भुत है क्योंकि यहां शिवलिंग का जलाभिषेक कोई और नहीं बल्कि स्वयं
मां गंगा करती हैं। झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित टूटी झरना नामक इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीसों घंटे स्वयं मां गंगा द्वारा किया जाता है। मां गंगा द्वारा शिवलिंग की यह पूजा सदियों से निरंतर चलती आ रही है।
पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में गुवाहाटी के पास स्थित कामाख्या देवी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध है। लेकिन इस अति प्राचीन मंदिर में देवी सती या मां दुर्गा की एक भी मूर्ति नहीं है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी, जो समय के साथ महान शक्ति-साधना का केंद्र बनी। कहते हैं यहां हर किसी कामना सिद्ध होती है। यही कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है।
यह मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसका पहला हिस्सा सबसे बड़ा है, जहां पर हर शख्स को जाने नहीं दिया जाता है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर समय पानी निकलता है। कहते हैं कि महीने में एकबार इस पत्थर से खून की धारा निकलती है। ऐसा क्यों और कैसे होता है, यह आजतक किसी को ज्ञात नहीं है?
इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है, लेकिन कुछ सफेद भी है, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे सफेद चूहा दिख जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
आश्चर्यजनक यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर नहीं चल सकते, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है, लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।
ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के मध्य स्थित है। यह भी भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर पर माता सती की जीभ गिरी थी। माता सती की जीभ के
प्रतीक के रुप में यहां धरती के गर्भ से लपलपाती ज्वालाएं निकलती हैं, जो नौ रंग की होती हैं। इन नौ रंगों की ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रुप माना जाता है। ये देवियां है:
महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेगी? कहते हैं, कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन वे विफल रहे।
राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर का बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-
प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पल भर पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।
ऐसा कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर- दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर में रात में रुकना मना है।
यहां साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं। यह धरती का केंद्र है। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश मानसरोवर के पास ही कैलाश पर्वत और आगे मेरू पर्वत स्थित है। यह संपूर्ण क्षेत्र शिव और देवलोक कहा गया है। रहस्य और चमत्कार से परिपूर्ण इस स्थान की महिमा वेद और पुराणों में भरी पड़ी है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है, जो चार धर्मों- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केंद्र है। कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज व करनाली।
देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर। विश्वप्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है। यहां शिगणापुर शहर में भगवान शनि महाराज का खौफ इतना है कि शहर के अधिकांश घरों में खिड़की, दरवाजे और तिजोरी नहीं हैं। दरवाजों की जगह यदि लगे हैं तो केवल पर्दे। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां चोरी नहीं होती। कहा जाता है कि जो भी चोरी करता है उसे शनि महाराज सजा स्वयं दे देते हैं। इसके कई प्रत्यक्ष उदाहरण देखे गए हैं। शनि के प्रकोप से मुक्ति के लिए यहां पर विश्वभर से प्रति शनिवार लाखों लोग आते हैं।
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इस स्थान को सबसे रहस्यमय माना जाता है। यदुवंशियों के लिए यह प्रमुख स्थान था। इस मंदिर को अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
आखिर क्या कारण थे कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। खजुराहो वैसे तो भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के बीच करवाया था। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित ह
उत्तराखंड का चमोली डिस्ट्रिक्ट, अलकनंदा नदी का किनारा भगवान बद्रीनाथ के घर के नाम से भी जाता है. बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है. इसके अलावा बद्रीनाथ में भी एक छोटा चार धाम है जिसमे भगवन विष्णु के एक सौ आठ मंदिर हैं जो भगवन विष्णु को समर्पित हैं.
भगवान विष्णु की यात्रा करने वाले लोगों का यहां तांता लगा रहता है पर यहां पर की जाने वाली यात्रा केवल अप्रैल से ले कर सितम्बर तक ही रहती है. इस मंदिर से सम्बंधित दो खास फेस्टिवल हैं जो इसकी खासियत को और बढ़ाते हैं.
माता मूर्ति का मेला: भगवान बद्रीनाथ की पूजा शुरू हो कर यह मेला सितम्बर तक चलता है जब तक कि मंदिर के कपाट बंद नहीं हो जाते. बद्री-केदार फेस्टिवल: आठ दिनों तक चलने वाला यह मेला बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों जगहों पर जून के महीने में मनाया जाता है.
हिमालय की गोद, गढ़वाल क्षेत्र में भगवान शिव के अलोकिक मंदिरों में से एक केदारनाथ मंदिर स्थित है. एक कहानी के अनुसार इसका निर्माण पांडवों ने युद्ध में कौरवों की मृत्यु के प्राश्चित के लिए बनवाया था. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इसको दोबारा restored करवाया. यह उत्तराखंड के छोटे चार धामों में से एक है जिसके लिए यहां आने वालों को 14 किलोमीटर के पहाड़ी रास्तों पर से गुजरना पड़ता है.
यह मंदिर ठन्डे ग्लेशियर और ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है जिनकी ऊंचाई लगभग 3,583 मीटर तक है. सर्दियों के दौरान यह मंदिर बंद कर दिया जाता है. सर्दी अधिक पड़ने की सूरत में भगवन शिव को उखीमठ ले जाया जाता है और पांच-छह महीने वहीं उनकी पूजा की जाती है.
सांची, मध्य-प्रदेश के रायसेन डिस्ट्रिक्ट का एक सा गांव है जो कि बौद्धिक व ऐतिहसिक इमारतों का घर है जो यहां तीसरी ईसा पूर्व और बारवीं सदी के दौरान बनाये गए थे. इन सबमें सबसे प्रमुख है सांची स्तूप जहां महात्मा बुद्ध के अवशेष संभाल कर रखे गये हैं.
इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा कराया गया था. इसके चार दरवाजे हैं जो प्रेम, श्रद्धा, शांति और विश्वास को दर्शाते हैं. UNESCOc द्वारा सांची स्तूप को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया चुका है.
ये मंदिर तमिलनाडु के पास एक छोटे से द्वीप के समीप है जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है. यह हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार उनके चार पवित्र धामों में से एक है. एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम, रावण को हरा कर आये थे तो पश्चाताप के लिए उन्होंने शिव की पूजा करने की योजना बनाई क्योंकि उनके हाथों से एक ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी थी. शिव की पूजा के लिए उन्होंने हनुमान को कैलाश भेजा जिससे वह उनके लिंग रूप को वहां ला सकें. पर जब तक हनुमान वापिस लौटते तब तक सीता माता रेत का एक लिंग बना चुकी थी. हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को विश्वलिंग खा गया जबकि सीता द्वारा बनाये गए लिंग को रामलिंग कहा गया. भगवान राम के आदेश से आज भी रामलिंग से पहले विश्वलिंग की पूजा की जाती है.
जम्मू कश्मीर के कटरा से 12 किलोमीटर त्रिकुट की पहाड़ियों पर जमीन से 5200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है वह पवित्र गुफा जहां माता वैष्णो देवी के दर्शन होते है. आज वहां वैष्णो देवी तीन पत्थरों के रूप में रहती है जिसे पिंडी कहा जाता है. हर साल लाखों लोग माता से आशीर्वाद लेने यहां आते हैं ऐसी मान्यता है कि माता अपने यहां आने वाले लोगों को खुद decide करती हैं और कोई भी व्यक्ति उन्ही की इच्छा से उन तक पहुंच पाता है.
गोल्डन टेम्पल को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है. यह सिखों के पवित्र स्थानों में से एक है. इस गुरुद्वारे के चार दरवाजे है जो कि यह दर्शाते है कि इस मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं, चाहे वह किसी धर्म को मानने वाला हो, किसी भी सम्प्रदाय का हो. यह मंदिर यूनिवर्सल भाईचारे का अद्भुत नमूना है. गुरु ग्रन्थ साहिब को सबसे पहले इसी मंदिर में रखा गया था.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में उन्नीसवीं सदी का बना यह मंदिर कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो चुका है. गंगा के बाद यमुना को भी काफी पवित्रता कि दृष्टि से देखा जाता है. जमीन से 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां यमुना देवी कि पूजा की जाती है. मंदिर के दरवाजे अक्षय त्रित्या से लेकर दिवाली तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते ह
मदुरई का मीनाक्षी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है बल्कि यह कला के दीवानों के लिए भी किसी जन्नत से कम नहीं है. यह मंदिर देवी पार्वती और उनके पति शिव को समर्पित है. मंदिर के बीचों बीच एक सुनहरा कमल रुपी तालाब है. मंदिर में करीब 985 पिल्लर हैं, हर पिल्लर को अलग अलग कला कृतियों द्वारा उकेरा गया है. इस मंदिर का नाम विश्व के सात अजूबों के लिए भी भेजा जा चुका है.
मंदिरों के शहर उड़ीसा में एक और मंदिर है जो बड़ा होने के साथ-साथ अपने साथ इतिहास को भी समेटे हुए है.यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ साथ इतिहासकारों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता है जिसकी वजह यहां कि एतिहासिक इमारते है.
वैसे तो यह मंदिर शिव को समर्पित है पर यहां शिव के साथ साथ भगवान विष्णु कि भी पूजा कि जाती है, जिस कारण
यह हरिहर के नाम से भी जाना जाता है.
यमुना का किनारा जहां एक ओर दिल्ली को दो भागों में बांटता है, वहीं अक्षरधाम मंदिर आस्था के जरिये दिल्ली के दोनों किनारों को आपस में जोड़ता है. अक्षरधाम मंदिर, वास्तुशास्त्र और पंचशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. इसका मुख्य गुम्बद मंदिर से करीब 11 फीट ऊंचा है.
इस मंदिर को बनाने में राजस्थानी गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया गया है. यहां पर होने वाला लाइट और म्यूजिक शो मंदिर कि सुन्दरता में चार चांद लगा देता ह
उदयपुर और जोधपुर के बीच पाली डिस्ट्रिक्ट में गांव रणकपुर में यह मंदिर स्थित है जिसे जैन धर्म के 5 पवित्र स्थलों में शुमार किया जाता है. यह पूरा मंदिर हल्के सफ़ेद रंग के मार्बल से बना हुआ है. जिसमें 1400 नक्काशी किये हुए पिलर लगे हुए हैं. यह मंदिर केवल प्राक्रतिक रौशनी का ही इस्तेमाल करता है, जिससे आध्यात्म में मदद मिलती है.
कहा जाता है कि भारत की भूमि विद्वानों की भूमि है, जिसके पीछे भारत का गौरवशाली इतिहास गवाह रहा है. चिकित्सा से ले कर विज्ञान के क्षेत्र में आगे होने के बावजूद यह देश कई मायनों में बाकी देशों से हटकर है जिसमें आस्था भी एक अहम भूमिका निभाती है, जो इस देश को इतनी विविधता होने के बावजूद एक धागे में बांधे रखता है.
धर्म, भक्ति, अध्यात्म और साधना का देश है भारत, जहां प्राचीन काल से पूजा-स्थल के रूप में मंदिर विशेष महत्व रखते रहे हैं। यहां कई मंदिर ऐसे हैं, जहां विस्मयकारी चमत्कार भी होते बताए जाते हैं। जहां आस्थावानों के लिए वे चमत्कार
दैवी कृपा हैं, तो अन्य के लिए कौतूहल और आश्चर्य का विषय। आइए जानते हैं, भारत के कुछ विशिष्ट मंदिरों के बारे में, जिनके रहस्य असीम वैज्ञानिक प्रगति के बाद कोई नहीं जान पाया है।
इस आस्था को बनाये रखने में यहां मौजूद मंदिरों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता. चलिए आज हम आपको भारत के ऐसे ही 30 मंदिरों की सैर पर ले चलते हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, इसी के साथ-साथ भारत के गौरवशाली इतिहास को भी समेटे हुए है.
1. टूटी झरना मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर बेहद अद्भुत है क्योंकि यहां शिवलिंग का जलाभिषेक कोई और नहीं बल्कि स्वयं
मां गंगा करती हैं। झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित टूटी झरना नामक इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीसों घंटे स्वयं मां गंगा द्वारा किया जाता है। मां गंगा द्वारा शिवलिंग की यह पूजा सदियों से निरंतर चलती आ रही है।
2. कामाख्या मंदिर
पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में गुवाहाटी के पास स्थित कामाख्या देवी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध है। लेकिन इस अति प्राचीन मंदिर में देवी सती या मां दुर्गा की एक भी मूर्ति नहीं है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी, जो समय के साथ महान शक्ति-साधना का केंद्र बनी। कहते हैं यहां हर किसी कामना सिद्ध होती है। यही कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है।
यह मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसका पहला हिस्सा सबसे बड़ा है, जहां पर हर शख्स को जाने नहीं दिया जाता है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर समय पानी निकलता है। कहते हैं कि महीने में एकबार इस पत्थर से खून की धारा निकलती है। ऐसा क्यों और कैसे होता है, यह आजतक किसी को ज्ञात नहीं है?
3. करणी माता मंदिर
इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है, लेकिन कुछ सफेद भी है, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे सफेद चूहा दिख जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
आश्चर्यजनक यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर नहीं चल सकते, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है, लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।
4. ज्वालामुखी मंदिर
ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के मध्य स्थित है। यह भी भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर पर माता सती की जीभ गिरी थी। माता सती की जीभ के
प्रतीक के रुप में यहां धरती के गर्भ से लपलपाती ज्वालाएं निकलती हैं, जो नौ रंग की होती हैं। इन नौ रंगों की ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रुप माना जाता है। ये देवियां है:
महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेगी? कहते हैं, कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन वे विफल रहे।
5. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर का बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-
प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पल भर पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।
ऐसा कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर- दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर में रात में रुकना मना है।
6. कैलाश मानसरोवर
यहां साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं। यह धरती का केंद्र है। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश मानसरोवर के पास ही कैलाश पर्वत और आगे मेरू पर्वत स्थित है। यह संपूर्ण क्षेत्र शिव और देवलोक कहा गया है। रहस्य और चमत्कार से परिपूर्ण इस स्थान की महिमा वेद और पुराणों में भरी पड़ी है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है, जो चार धर्मों- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केंद्र है। कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज व करनाली।
7. शनि शिंगणापुर
देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर। विश्वप्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है। यहां शिगणापुर शहर में भगवान शनि महाराज का खौफ इतना है कि शहर के अधिकांश घरों में खिड़की, दरवाजे और तिजोरी नहीं हैं। दरवाजों की जगह यदि लगे हैं तो केवल पर्दे। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां चोरी नहीं होती। कहा जाता है कि जो भी चोरी करता है उसे शनि महाराज सजा स्वयं दे देते हैं। इसके कई प्रत्यक्ष उदाहरण देखे गए हैं। शनि के प्रकोप से मुक्ति के लिए यहां पर विश्वभर से प्रति शनिवार लाखों लोग आते हैं।
8. सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। प्राचीनकाल में इसका शिवलिंग हवा में झूलता था, लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया। माना जाता है कि 24 शिवलिंगों की स्थापना की गई थी उसमें सोमनाथ का शिवलिंग बीचोबीच था। इन शिवलिंगों में मक्का स्थित काबा का शिवलिंग भी शामिल है। इनमें से कुछ शिवलिंग आकाश में स्थित कर्क रेखा के नीचे आते हैं।गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इस स्थान को सबसे रहस्यमय माना जाता है। यदुवंशियों के लिए यह प्रमुख स्थान था। इस मंदिर को अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
9. खजुराहो का मंदिर
आखिर क्या कारण थे कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। खजुराहो वैसे तो भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के बीच करवाया था। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित ह
10. बद्रीनाथ मंदिर
उत्तराखंड का चमोली डिस्ट्रिक्ट, अलकनंदा नदी का किनारा भगवान बद्रीनाथ के घर के नाम से भी जाता है. बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है. इसके अलावा बद्रीनाथ में भी एक छोटा चार धाम है जिसमे भगवन विष्णु के एक सौ आठ मंदिर हैं जो भगवन विष्णु को समर्पित हैं.
भगवान विष्णु की यात्रा करने वाले लोगों का यहां तांता लगा रहता है पर यहां पर की जाने वाली यात्रा केवल अप्रैल से ले कर सितम्बर तक ही रहती है. इस मंदिर से सम्बंधित दो खास फेस्टिवल हैं जो इसकी खासियत को और बढ़ाते हैं.
माता मूर्ति का मेला: भगवान बद्रीनाथ की पूजा शुरू हो कर यह मेला सितम्बर तक चलता है जब तक कि मंदिर के कपाट बंद नहीं हो जाते. बद्री-केदार फेस्टिवल: आठ दिनों तक चलने वाला यह मेला बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों जगहों पर जून के महीने में मनाया जाता है.
11. केदारनाथ मंदिर
हिमालय की गोद, गढ़वाल क्षेत्र में भगवान शिव के अलोकिक मंदिरों में से एक केदारनाथ मंदिर स्थित है. एक कहानी के अनुसार इसका निर्माण पांडवों ने युद्ध में कौरवों की मृत्यु के प्राश्चित के लिए बनवाया था. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इसको दोबारा restored करवाया. यह उत्तराखंड के छोटे चार धामों में से एक है जिसके लिए यहां आने वालों को 14 किलोमीटर के पहाड़ी रास्तों पर से गुजरना पड़ता है.
यह मंदिर ठन्डे ग्लेशियर और ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है जिनकी ऊंचाई लगभग 3,583 मीटर तक है. सर्दियों के दौरान यह मंदिर बंद कर दिया जाता है. सर्दी अधिक पड़ने की सूरत में भगवन शिव को उखीमठ ले जाया जाता है और पांच-छह महीने वहीं उनकी पूजा की जाती है.
12. सांची स्तूप
सांची, मध्य-प्रदेश के रायसेन डिस्ट्रिक्ट का एक सा गांव है जो कि बौद्धिक व ऐतिहसिक इमारतों का घर है जो यहां तीसरी ईसा पूर्व और बारवीं सदी के दौरान बनाये गए थे. इन सबमें सबसे प्रमुख है सांची स्तूप जहां महात्मा बुद्ध के अवशेष संभाल कर रखे गये हैं.
इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा कराया गया था. इसके चार दरवाजे हैं जो प्रेम, श्रद्धा, शांति और विश्वास को दर्शाते हैं. UNESCOc द्वारा सांची स्तूप को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दिया चुका है.
13. रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) मंदिर
ये मंदिर तमिलनाडु के पास एक छोटे से द्वीप के समीप है जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है. यह हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार उनके चार पवित्र धामों में से एक है. एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम, रावण को हरा कर आये थे तो पश्चाताप के लिए उन्होंने शिव की पूजा करने की योजना बनाई क्योंकि उनके हाथों से एक ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी थी. शिव की पूजा के लिए उन्होंने हनुमान को कैलाश भेजा जिससे वह उनके लिंग रूप को वहां ला सकें. पर जब तक हनुमान वापिस लौटते तब तक सीता माता रेत का एक लिंग बना चुकी थी. हनुमान द्वारा लाए गए लिंग को विश्वलिंग खा गया जबकि सीता द्वारा बनाये गए लिंग को रामलिंग कहा गया. भगवान राम के आदेश से आज भी रामलिंग से पहले विश्वलिंग की पूजा की जाती है.
14. वैष्णो देवी मंदिर
जम्मू कश्मीर के कटरा से 12 किलोमीटर त्रिकुट की पहाड़ियों पर जमीन से 5200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है वह पवित्र गुफा जहां माता वैष्णो देवी के दर्शन होते है. आज वहां वैष्णो देवी तीन पत्थरों के रूप में रहती है जिसे पिंडी कहा जाता है. हर साल लाखों लोग माता से आशीर्वाद लेने यहां आते हैं ऐसी मान्यता है कि माता अपने यहां आने वाले लोगों को खुद decide करती हैं और कोई भी व्यक्ति उन्ही की इच्छा से उन तक पहुंच पाता है.
15. गोल्डन टेम्पल, अमृतसर
गोल्डन टेम्पल को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है. यह सिखों के पवित्र स्थानों में से एक है. इस गुरुद्वारे के चार दरवाजे है जो कि यह दर्शाते है कि इस मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं, चाहे वह किसी धर्म को मानने वाला हो, किसी भी सम्प्रदाय का हो. यह मंदिर यूनिवर्सल भाईचारे का अद्भुत नमूना है. गुरु ग्रन्थ साहिब को सबसे पहले इसी मंदिर में रखा गया था.
16.यमुनोत्री टेम्पल
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में उन्नीसवीं सदी का बना यह मंदिर कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो चुका है. गंगा के बाद यमुना को भी काफी पवित्रता कि दृष्टि से देखा जाता है. जमीन से 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां यमुना देवी कि पूजा की जाती है. मंदिर के दरवाजे अक्षय त्रित्या से लेकर दिवाली तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते ह
17. मिनाक्षी टेम्पल, मदुरई
मदुरई का मीनाक्षी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है बल्कि यह कला के दीवानों के लिए भी किसी जन्नत से कम नहीं है. यह मंदिर देवी पार्वती और उनके पति शिव को समर्पित है. मंदिर के बीचों बीच एक सुनहरा कमल रुपी तालाब है. मंदिर में करीब 985 पिल्लर हैं, हर पिल्लर को अलग अलग कला कृतियों द्वारा उकेरा गया है. इस मंदिर का नाम विश्व के सात अजूबों के लिए भी भेजा जा चुका है.
18. लिंगराज मंदिर
मंदिरों के शहर उड़ीसा में एक और मंदिर है जो बड़ा होने के साथ-साथ अपने साथ इतिहास को भी समेटे हुए है.यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ साथ इतिहासकारों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता है जिसकी वजह यहां कि एतिहासिक इमारते है.
वैसे तो यह मंदिर शिव को समर्पित है पर यहां शिव के साथ साथ भगवान विष्णु कि भी पूजा कि जाती है, जिस कारण
यह हरिहर के नाम से भी जाना जाता है.
19.अक्षरधाम मंदिर
यमुना का किनारा जहां एक ओर दिल्ली को दो भागों में बांटता है, वहीं अक्षरधाम मंदिर आस्था के जरिये दिल्ली के दोनों किनारों को आपस में जोड़ता है. अक्षरधाम मंदिर, वास्तुशास्त्र और पंचशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. इसका मुख्य गुम्बद मंदिर से करीब 11 फीट ऊंचा है.
इस मंदिर को बनाने में राजस्थानी गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया गया है. यहां पर होने वाला लाइट और म्यूजिक शो मंदिर कि सुन्दरता में चार चांद लगा देता ह
20. रणकपुर मंदिर
उदयपुर और जोधपुर के बीच पाली डिस्ट्रिक्ट में गांव रणकपुर में यह मंदिर स्थित है जिसे जैन धर्म के 5 पवित्र स्थलों में शुमार किया जाता है. यह पूरा मंदिर हल्के सफ़ेद रंग के मार्बल से बना हुआ है. जिसमें 1400 नक्काशी किये हुए पिलर लगे हुए हैं. यह मंदिर केवल प्राक्रतिक रौशनी का ही इस्तेमाल करता है, जिससे आध्यात्म में मदद मिलती है.
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